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उच्चावच के निरूपण की विधियाँ

भूपृष्ठ समतल नहीं है तथा इसपर विभिन्न प्रकार के पर्वत, पहाड़ियाँ, पठार तथा मैदान स्थित है। भूपृष्ठ के भौतिक लक्षणों को उच्चावच (उत्थान एवं अवनयन) के रूप में जाना जाता है। इन लक्षणों को दर्शाने वाले मानचित्र को उच्चावच मानचित्र कहते हैं।

वर्षों से मानचित्रों पर उच्चावच लक्षण प्रदर्शित करने के लिए अनेक विधियों का उपयोग होता रहा है। ये विधियाँ है हैश्यूर, पहाड़ी छायांकन, स्तर आभा, बेंच मार्क, स्थानिक ऊँचाई तथा समोच्च रेखाएँ ।

सभी स्थलाकृतिक मानचित्रों पर किसी क्षेत्र के उच्चावच को दिखाने के लिए समोच्य रेखा एवं स्थानिक ऊँचाइयों का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है।

समोच्च रेखा

समोच्च रेखा समुद्र तल से समान ऊँचाई वाले बिंदुओं को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा होती है। स्थलाकृतिक मानचित्र वह मानचित्र, जो भू-आकृति को सर्वोच्च रेखाओं द्वारा प्रदर्शित करता है। इन्हें समोच्य रेखा मानचित्र भी कहा जाता है।

उच्चावच लक्षणों को समोच्च रेखा के द्वारा दर्शाना अत्यधिक उपयोगी एवं लोकप्रिय विधि है। मानचित्र पर अंकित समोच्य रेखाओं के माध्यम से स्थलाकृति की विवेचना एक क्षेत्र की स्थलाकृति को समझने की सबसे उपयोग विधि है।

समोच्य रेखाओं के कुछ मूल लक्षण:

पहले स्थलाकृतिक मानचित्रों में समोच्च रेखाओं को खींचने के लिए धरातलीय सर्वेक्षण तथा समापन विधि का उपयोग किया जाता था। लेकिन अब फोटोग्राफी के आविष्कार तथा वायव फ्रोटोग्राफी से सर्वेक्षण तथा तल मापन एवं मानचित्रीकरण की पुरानी पद्धतियों का प्रयोग छोड़ दिया गया है। फलस्वरूप स्थलाकृतिक मानचित्र बनाने के लिए इन फोटोग्राफ का उपयोग होता है।

समोच्य रेखाएँ समुद्र तल के ऊपर विभिन्न ऊर्ध्वाधर अंतरालों (VI), जैसे- 20, 50, 100 मीटर पर खींची जाती है। इसे समोच्य रेखाओं का अंतराल कहा जाता है। दिए गए मानचित्र पर प्रायः यह नियत होता है इसे सामान्यतः मीटर में व्यक्त किया जाता है। एक स्थान से दूसरे स्थान पर ढाल की प्रकृति के अनुसार दो समोच्च रेखाओं के बीच की क्षैतिजीय दूरी में अंतर होता है, जबकि उनके बीच का ऊर्ध्वाधर अंतराल अचल होता है। क्षैतिज दूरी, जिसे क्षैतिज तुल्यांक (HE) के नाम से भी जाना जाता है, मंद झाला के लिए अधिक एवं तीव्र डाला के लिए कम होती है।

  • समोच्य रेखाएँ समान ऊँचाइयों वाले स्थान को दर्शाती हैं।
  • समोच्य रेखाएँ एवं उनकी आकृतियाँ स्थलाकृति के ढाल एवं ऊँचाई को दर्शाती हैं।
  • पास-पास खींची, अधिक घनी समोच्च रेखाएँ तीव्र ढाल को तथा दूर-दूर खींची हुई कम घनी समोच्य रेखाएँ मंद डाल को प्रदर्शित करती हैं। दो या दो से अधिक समोच्य रेखाओं के एक-दूसरे से मिलने से ऊर्ध्वाधर आकृतियाँ जैसे भृगु अथवा जलप्रपात प्रदशित होते हैं।
  • विभिन्न ऊँचाई वाली दो समोच्य रेखाएँ सामान्यतः एक-दूसरे को नहीं काटती हैं।

सभी स्थलाकृतिक आकृतियों के ढाल अलग-अलग होते है। उदाहरण के लिए, एक समतल सतह का ढाल कम होता है तथा भृगु एवं महाखड्ड तीब्र ढाल वाले होते हैं। इसी प्रकार घाटियों एवं पर्वत श्रृंखलाओं में विभिन्न प्रकार की तीव्रता वाले डाल होते हैं, जो खड़े ढाल से कम ढाल तक हो सकते हैं।