उष्ण कटिबंधीय चक्रवात
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चक्रवात (साइक्लोन) किसे कहते हैं ? उष्ण कटिबंधीय चक्रवात का वर्णन करें।
चक्रवात को अंग्रेजी में साइक्लोन कहते हैं। साइक्लोन एक ऐसी संरचना है जो गर्म हवा के चारों ओर कम वायुमंडलीय दाब के साथ उत्पन्न होती है। चक्रवात प्राय: गोलाकार, अंडाकार या ‘V’ आकार के होते हैं।
चक्रवात को ‘वायुमंडलीय विक्षोभ’ (Atmospheric Disturbance) के अंतर्गत शामिल किया जाता है। जब एक तरफ से गर्म हवाओं तथा दूसरी तरफ से ठंडी हवा का मिलाप होता है तो वह एक गोलाकार आंधी का आकार लेने लगती है इसे ही चक्रवात कहते हैं।
दूसरे शब्दों में हवाओं का परिवर्तनशील और अस्थिर चक्र, जिसके केंद्र में निम्न वायुदाब तथा बाहर उच्च वायुदाब होता है, ‘चक्रवात’ कहलाता है। चक्रवात सामान्यत: निम्न वायुदाब का केंद्र होता है, इसके चारों ओर समवायुदाब रेखाएँ संकेंद्रित रहती हैं तथा परिधि या बाहर की ओर उच्च वायुदाब रहता है, जिसके कारण हवाएँ चक्रीय गति से परिधि से केंद्र की ओर चलने लगती हैं।
पृथ्वी के घूर्णन के कारण इनकी दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत (वामावर्त) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा (दक्षिणावर्त) में होती है।
आईएमडी का कहना है कि चक्रवात एक तीव्र निम्न दबाव क्षेत्र है। यह एक गोलाकार पथ में चक्कर लगाती घूमती हुई वायु राशि होती है। अर्थात यह उष्णकटिबंधीय या उपउष्णकटिबंधीय क्षेत्र के ऊपर के वातावरण में एक भंवर (चक्कर) है। इसकी गति अत्यंत तेज होती है। इसकी अधिकतम गति 30 से 300 किलोमीटर प्रति घंटा हो सकती है।
उत्तरी गोलार्द्ध में हरीकेन या टाइफून, मैक्सिको की खाड़ी में टारनेडो दक्षिणी गोलार्द्ध में इसे चक्रवात (Cyclone) तथा पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में विली-विली कहते हैं।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)
उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों में उत्पन्न तथा विकसित होने वाले चक्रवातों को ‘उष्ण कटिबंधीय चक्रवात’कहते हैं। ये 5° से 30° उत्तर तथा 5° से 30° दक्षिणी अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं। ज्ञातव्य है कि भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° से 8° अक्षांशों वाले क्षेत्रों में न्यूनतम कोरिऑलिस बल के कारण इन चक्रवातों का प्राय: अभाव रहता है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी वायुमंडलीय तूफान होते हैं, जिनकी उत्पत्ति कर्क एवं मकर रेखाओं के मध्य महासागरीय क्षेत्र में होती है, तत्पश्चात् इनका प्रवाह स्थलीय क्षेत्र की तरफ होता है।
ITCZ के प्रभाव से निम्न वायुदाब के केंद्र में विभिन्न क्षेत्रों से पवनें अभिसरित होती हैं तथा कोरिऑलिस बल के प्रभाव से वृत्ताकार मार्ग का अनुसरण करती हुई ऊपर उठती हैं। फलत: वृत्ताकार समदाब रेखाओं के सहारे उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति होती है।
व्यापारिक पूर्वी पवन की पेटी का अधिक प्रभाव होने के कारण सामान्यत: इनकी गति की दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर रहती है।
(ये चक्रवात सदैव गतिशील नहीं होते हैं। कभी-कभी ये एक ही स्थान पर कई दिनों तक स्थायी हो जाते हैं तथा तीव्र वर्षा करते हैं।)
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के प्रमुख क्षेत्र
कैरेबियन
चीन सागर
हिंद महासागर
ऑस्ट्रेलिया
(ध्यान दें – उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के मध्य/केंद्र में शांत क्षेत्र पाया जाता है, जिसे ‘चक्रवात की आँख’कहते हैं, जबकि शीतोष्ण चक्रवात में इसका अभाव रहता है।)
ऊष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की विशेषताएं –
- ऊष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के आकार में पर्याप्त अन्तर होता है। सामान्य से इनकी व्यास 80 से 300 किमी. तक होती है। परन्तु कभी-कभी ये इतने छोटे होते हैं कि इनका व्यास 50 किमी. से भी कम हो जाता है।
- ये सदैव गतिशील नहीं होते हैं। कभी-कभी एक ही स्थान पर कई दिन तक स्थायी हो जाते हैं तथा तीव्र वर्षा प्रदान करते हैं।
- ऊष्ण कटिबन्धीय चक्रवात के प्रत्येक भाग में वर्षा होती है।
- ये विभिन्न गति (साधारण से प्रचण्ड) से आगे बढ़ते हैं। क्षीण चक्रवात 32 किमी. प्रति घण्टे की चाल से भ्रमण करते हैं, जबकि हरिकेन 120 किमी. प्रति घण्टे से भी अधिक तेज चलते है।
- अपनी प्रचण्ड गति तथा तूफानी स्वभाव के कारण ये चक्रवात अत्यन्त विनाशकारी होते हैं। एक स्थान पर कई दिनों तक स्थायी होकर इतनी भीषण वर्षा प्रदान करते हैं कि बाढ़ आ जाती है। तटीय भागों में इससे अपार क्षति होती है।
ऊष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के प्रकार
सामान्य रूप से ऊष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों को तीव्रता के आधार पर दो प्रमुख तथा चार उप-प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है;
- क्षीण चक्रवात
(i) ऊष्ण कटिबन्धीय विक्षोभ
(ii) ऊष्ण कटिबन्धीय अवदाब
- प्रचण्ड चक्रवात
(i) हरिकेन या टाइफून
(ii) टरनैडो
- e.knowledge_shahi
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