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समोच्च रेखा और समोच्च रेखाओं द्वारा भू-आकृतियों का प्रदर्शन
मानचित्र पर उच्चावच को दर्शाने के लिए समोच्च रेखाओं का प्रयोग किया जाता है। इसमें मानचित्र पर स्थित सभी स्थानों को मिलाते हुए कल्पित रेखाएं खींची जाती है। मानचित्र पर स्थित समान ऊंचाई वाले स्थानों को मिलाने वाली कल्पित रेखाओं को समोच्च रेखा कहते हैं।
समोच्च रेखाएं वह कल्पित रेखाएं है जो भूतल पर एक समान ऊँचाई (समुद्र तल से एक समान) वाले स्थानों या बिंदुओं को मिलाते हुए खींची जाती है। मानचित्र पर इन्हे भूरे (बादामी) रंग से प्रदर्शित किया जाता है।
समोच्च रेखा और समोच्च रेखाओं की विशेषता
समोच्च रेखाएं समान ऊँचाई वाले स्थानों को प्रदर्शित करने वाली रेखाएं होती हैं। एक समोच्च रेखा के किसी भी बिंदु पर ऊंचाई समान होती है अर्थात् एक समोच्च रेखा के ऊपर सर्वत्र एक ही ऊँचाई होती है। समोच्च रेखा सदैव 0 m से प्रारंभ होती है और इस के मध्य का अंतर सदैव समान होता है
पृथ्वी पर किसी क्षेत्र के भौतिक स्वरूपों का आकार (धरातल) स्थान-स्थान पर परिवर्तनशील है। अत: इनकी रचना विशेष प्रकार की होती है। धरातल के असमतल होने के कारण समोच्च, रेखाएं वक्राकार होती हैं।
समोच्च रेखाएं न तो एक-दूसरे को काटती हैं एवं न ही बीच में समाप्त हो सकती हैं। क्षेत्र के अनुरूप, मानचित्र पर ये रेखाएं या तो एक भाग से प्रारम्भ होकर दूसरे भाग तक जाती हैं अथवा मानचित्र में ही पूर्ण आकृति बनाती हुई आपस में मिल जाती हैं।
समोच्च रेखाओं की प्रकृति और सर्वमान्य परिभाषा के अनुसार, समोच्च रेखाएं अधिक ऊंचाई (higher elevation) के बिंदुओं को निम्न ऊंचाई (lower elevation) के बिंदुओं से अलग करती हैं। अर्थात समोच्च से एक तरफ उत्थान (चढ़ाई) की दिशा (uphill direction) और दूसरी तरफ ढलान दिशा (downhill direction) को परिभाषित करना हमेशा संभव होता है।
मानचित्र में समोच्च रेखाओं द्वारा धरातलीय लक्षण अंकित किये जाते हैं। इन समोच्च रेखाओं को भू- आकृतियों के अनुरूप दर्शाया जाता है, जिसमें पहाड़, पठार, मैदान, घाटी’, बर्फीले क्षेत्र और नदियाँ आदि प्रदर्शित की जाती है।
समोच्च रेखाओं द्वारा भू-आकृतियों का प्रदर्शन
भू-आकृतियों को प्रदर्शित करने वाली सभी विधियों में समोच्च रेखा विधि सबसे अधिक उपयोगी एवं प्रचलित विधि है। इसके द्वारा किसी भी प्रकार के भू-स्वरूप को सही-सही चित्रित किया जा सकता है। ऐसे स्थल स्वरूपों को देखकर आसानी से धरातल की वास्तविक आकृतियों को समझा जा सकता है।
अलग-अलग प्रकार के उच्चावच को प्रदर्शित करने के लिए समोच्च रेखाओं को खींचने या बनाने का प्रारूप भिन्न होता है।
भू-आकृतियों के अनुसार ही समोच्च रेखाओं का प्रारूप बनता है। इन रेखाओं का संख्यात्मक मान ऊँचाई के अनुसार होता है। जैसे, समोच्च रेखाओं द्वारा शंक्वाकार पहाड़ी का प्रदर्शन गोलाकार या घुमावदार आकृति में बनाया जाता है। इसमें रेखाओं का मान बाहर से अंदर की ओर बढ़ता हुआ होता है। इसके अंतर्गत बाहर की ओर वाली रेखा कम ऊँचाई को प्रदर्शित करती है और अंदर की ओर वाली रेखा अधिक ऊँचाई को प्रदर्शित करती है। प्रत्येक समोच्च रेखा बंद आकृति की होती है। वहीं, पठारी भाग को दिखाने के लिए समोच्च रेखाओं को दिखाने के लिए लंबाकार आकृति में बनाया जाता है।
मानचित्र पर घाटी को प्रदर्शित करने के लिए समोच्च रेखाओं को अंग्रेजी के “V” अक्षर की उल्टी आकृति बनाई जाती है। जिसमें समोच्च रेखाओं का मान बाहर से अंदर की ओर घटता जाता है। जल-प्रवाह प्रणाली, ढाल के अनुरूप होती है तथा समोच्च रेखाएं ढाल के अनुप्रस्थ दिशा में खींची जाती हैं। अतः संमोच्च रेखाएं सरिता एवं अन्य प्रवाह प्रणालियों को उनकी घाटी के आकार के अनुसार उन्हें काटती हुई खींची जाती हैं। एक समान ढाल को दिखाने के लिए समोच्च रेखाओं को समान दूरी पर खींचा जाता है। खड़ी ढाल को दिखाने के लिए समोच्च रेखाएं पास-पास बनाई जाती है। वहीं, मंद ढाल को दिखाने के लिए इन रेखाओं को दूर-दूर बनाया जाता है। इसी कारण पर्वतीय क्षेत्रों में समोच्च रेखाएं जटिल तथा मैदानी क्षेत्रों में सरल होती हैं। जब ये रेखाएं पास-पास होती हैं तो इनसे तीव्र ढाल एवं दूर-दूर होने पर मन्द ढाल का पता चलता है।
यह सभी समोच्च रेखाएं मिलकर समूह बनाती है। इन रेखाओं के समूह को अवतल ढाल या उत्तल ढाल कहते है। सीधे खड़े ढाल (90°) पर समोच्च रेखाएं एक-दूसरे से मिल जाती हैं। मानचित्र में जब अधिक ऊँचाई की समोच्च रेखाएं पास-पास बनी होती है तो वह समूह अवतल ढाल को दर्शाता है। इसके विपरीत स्थिति की समोच्च रेखाएं उत्तल ढाल को दर्शाती है। सीढ़ीनुमा ढाल के लिए दो-
दो समोच्च रेखाएं अंतराल में खींची जाती हैं।
भू-आकृतियों के अनुरूप ही समोच्च रेखाओं का प्रारूप बनता है और उन समोच्च रेखाओं पर संख्यात्मक मान ऊँचाई के अनुसार ही बैठाया जाता है। उदाहरण के लिए यदि वृत्ताकार प्रारूप में आठ दस समोच्च रेखाएं खींचे जाते हैं तो इससे दो भू-आकृतियाँ दिखाई जा सकती है। प्रथम शंक्वाकार पहाड़ी और द्वितीय झील।
शंक्वाकार पहाड़ी के लिए बनाए जानेवाले समोच्च रेखाओं का मान बाहर से अंदर की ओर बढ़ता जाता है। दूसरी ओर झील आकृति दिखाने के लिए समोच्च रेखाओं में बाहर की ओर अधिक मान वाली तथा अंदर की ओर कम मान वाली रेखा होती है।
समोच्च रेखाओं का उपयोग
समोच्च रेखा के उपयोग से मानचित्र के किसी भी भाग पर स्थित किसी स्थान की सटीक ऊंचाई (exact elevation) और भूमि का ढाल (slope of the land) ज्ञात किया जा सकता है।
स्थलाकृतिक मानचित्रों पर अंकित समोच्च रेखा, उच्चावचन (relief) को प्रदर्शित करने का सबसे सरल तरीका है। इसके माध्यम से मानचित्र पर उच्चावचन के सभी पांच (5) पहलुओं; आकृति, आकार, अभिविन्यास या दिग्विन्यास, ऊंचाई और ढाल) (shape, size, orientation, elevation and slope) को प्रदर्शित किया जाता है।
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