भूमिगत जल द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ

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भूमिगत जल द्वारा निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन करें  

चूना पत्थर (कार्स्ट) के क्षेत्र में भूमिगत जल द्वारा निर्मित विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियाँ मिलती हैं जिन्हें कार्स्ट स्थलाकृति कहते हैं। कार्स्ट स्थलाकृति एक प्रकार की भू-आकृति जो सरलता से घुलने वाले चूनाश्मी शैलों के क्षेत्र में विकसित होती है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें अनेक विलय गर्त (सिंक) या छिद्र होते हैं और भीतर ही भीतर परस्पर जुड़े हुए अनेक विलय-मार्ग या सुरंगे बनी होती है। कार्स्ट-स्थलाकृति के नीचे-नीचे गुफाएँ और अंतर्भौम सरिताएँ भी मिलती हैं।

चूने के पत्थर वाली चट्टानों के क्षेत्र में भूमिगत जल के द्वारा सतह के ऊपर तथा नीचे विचित्र प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण घोलन की क्रिया द्वारा होता है जिन्हें कार्स्ट स्थलाकृति कहा जाता है। ये स्थलरूप अन्य प्रकार की चट्टानों पर अपरदन के अन्य कारकों द्वारा उत्पन्न स्थलरूपों से सर्वथा भिन्न होते हैं।

भूमिगत जल के अपरदन द्वारा लैपीज, घोल रंध्र, डोलाइन, विलयन छिद्र, घोल पटल, कार्स्ट विंडो (खिड़की), कार्स्ट घाटी, कंदरा, प्राकृतिक पुल आदि स्थलाकृतियों का जन्म होता है। निक्षेपात्मक स्थलरूपों में अश्चुताश्म या स्टैलेक्टाइट, निश्चुताश्म या स्टैलेग्माइट, कंदरा स्तंभ आदि प्रमुख हैं। इस सभी तरह की स्थलाकृतिक संरचना क्षेत्र में देखने के लिए मिलती हैं। वस्तुतः यह एक विस्तृत किंतु शुद्ध चुना पत्थर द्वारा निर्मित क्षेत्र है।

कार्स्ट स्थलाकृति के विकास के लिये आवश्यक दशाएँ : कार्स्ट स्थलाकृति के उद्भव और विकास (आविर्भाव) के लिये विस्तृत किंतु शुद्ध चुना पत्थर या लाइमस्टोन होनी चाहिए। वास्तव में इस स्थलाकृति के विकास के लिए सतह या सतह के नीचे घुलनशील चट्टान होनी चाहिए जिसमें जल अपने रासायनिक क्रिया द्वारा विभिन्न स्थलरूपों का विकास कर सके।

इसके साथ ही घुलनशील चट्टान में संधियों का विकास अच्छी तरह होना चाहिये। इस कारण जल शैल की संधियों तथा छिद्रों से होकर चट्टानों को शीघ्र घोलने लग जाता है। वर्षा का जल उन संधियों में में समाविष्ट हो जाए। इससे घुलन क्रिया होती है।

कार्स्ट क्षेत्र में विस्तृत घाटियाँ होनी चाहिए तथा उनके समीप ऐसे उच्च स्थलखंड हों जिनमें ऊपरी सतह के नीचे अधिक विस्तृत रूप में लाइमस्टोन शैल की स्थिति हो। इस दशा में उच्च भाग की ऊपरी सतह से जल रिस कर नीचे लाइमस्टोन में पहुँचता है तथा वहाँ से नीचे उतर कर ढाल के अनुसार नदी की घाटी में पहुँचने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया के दौरान जल रासायनिक क्रिया द्वारा चुना पत्थर (लाइमस्टोन) में घुलन क्रिया के कारण तरह-तरह के छिद्रों तथा कंदराओं का निर्माण करता है।

यह सभी दशाएँ इस क्षेत्र के विकास में अनुकूलता प्रदान करते हैं। 

 भूजल के अपरदन द्वारा भू-आकृतियाँ:
स्वैलो होल :

छोटे और मध्यम आकार के गोल उथले गड्ढों को स्वैलो होल कहा जाता है जो चुना पत्थर के घुलने से सतह पर बनते हैं।

 सिंकहोल :

एक सिंकहोल शीर्ष पर गोलाकार और नीचे की ओर फ़नल के आकार का होता है, जिसका आकार कुछ वर्ग मीटर से एक हेक्टेयर तक होता है और गहराई आधे मीटर से तीस मीटर या उससे अधिक तक होती है। सिंकहोल चूना पत्थर/कार्स्ट क्षेत्रों में बहुत आम हैं।

 लैपीज :

लैपीज असमान खाँचे और लकीरें होती हैं जो तब बनती हैं जब अपरदन की प्रक्रिया द्वारा चूना पत्थर की सतह का अधिकांश भाग हटा दिया जाता है। इस प्रकार के गहरे खाँचे कार्स्ट क्षेत्र में पाई जाने वाली अपक्षयित चूना पत्थर की सतह को बनाते हैं।

 गुफाएँ :

उन क्षेत्रों में जहाँ चूना पत्थर या डोलोमाइट के साथ चट्टानों (शेल्स, सैंडस्टोन, क्वार्टजाइट्स) की बेड हैं या उन क्षेत्रों में जहाँ चूना पत्थर मोटे परत (बेड) के रूप में होते हैं, गुफा का निर्माण प्रमुख है। चूना पत्थर की चट्टानों के आधार पर विभिन्न ऊँचाई पर गुफाओं का निर्माण होता है।

भूजल द्वारा निक्षेपित भू-आकृतियाँ
 स्टैलेक्टाइट्स :

स्टैलेक्टाइट्स विभिन्न व्यास के आइकल्स के रूप में लटकते रहते हैं। आमतौर पर वे अपने स्रोत पर चौड़े होते हैं और सिरों की ओर झुकते हैं। ये विभिन्न रूपों में दिखाई देते हैं। 

 स्टैलेग्माइट्स:

स्टैलेग्माइट्स गुफाओं के तल से ऊपर उठते हैं। वे सतह पर स्टैलेक्टाइट के माध्यम से पानी टपकने के कारण बनते हैं। कभी कभी स्टैलेग्माइट्स एक स्तंभ, एक डिस्क का आकार ले सकते हैं।

स्तंभ:

स्टैलेग्माइट और स्टैलेक्टाइट्स अंततः मिल कर अलग-अलग व्यास के स्तंभों को आकार देते हैं।

- e.knowledge_shahi