वायुमण्डल की संरचना

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वायुमण्डल की संरचना का वर्णन करें

पृथ्वी के चारों ओर कई सौ किलोमीटर की मोटाई में व्याप्त गैसीय आवरण को ‘वायुमण्डल’ कहा जाता है। पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के कारण ही यह वायुमण्डल उसके साथ जुड़ा हुआ है। वायुमण्डल की संरचना में कई गैसों का योगदान होता है, परन्तु उसमे 99% भाग केवल नाइट्रोजन (78%) तथा ऑक्सीजन ( 21%) का ही रहता है। शेष एक प्रतिशत का प्रतिनिधित्व आर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन, हीलियम, नियोन, क्रिप्टोन, जेनोन, ओषोण (ओजोन) आदि भारी तथा हलकी गैसों द्वारा होता है। वायुमण्डल के निचले स्तर में (20 किमी. तक) भारी गैस (कार्बन डाइ ऑक्साइड, ऑक्सीजन) और 100 किमी. तक नाइट्रोजन तथा 125 किमी. तक हाइड्रोजन तथा अधिक ऊँचाई पर हलकी गैस जैसे हीलियम, नियोन, क्रिप्टोन, जेनोन आदि पायी जाती है।

जलवायु के दृष्टिकोण से जल वाष्प (Water Vapour) का सर्वाधिक महत्त्व होता है। वायु में इसकी मात्रा अधिकतम रूप में 5 प्रतिशत रहती है। वाष्प की यह मात्रा तापक्रम पर आधारित होती है। भूतल से वायुमण्डल के 5 किमी तक वाले भाग में समस्त वाष्प का 90 प्रतिशत भाग रहता है। ऊपर जाने पर वाष्प की मात्रा घटती जाती है। यदि वायुमण्डल की समस्त वाष्प का संघनन (Condensation) कर दिया जाये तो पृथ्वी के चारों तरफ एक इंच मोटी जल की परत बन सकती है। वायुमण्डल में वाष्प की यह न्यून मात्रा सर्वाधिक महत्त्व रखती है। वाष्प के कारण ही सभी प्रकार के संघनन तथा वर्षण एवं उनके विभिन्न रूप (बादल, तुषार, जलवृष्टि, हिम, ओस, ओला आदि) का सृजन होता है।

गैस तथा वाष्प के अतिरिक्त वायुमण्डल में कुछ सूक्ष्म ठोस कण भी पाये जाते हैं। इनमें धूल कण सर्वाधिक होते हैं। इनकी स्थिति के कारण वायुमण्डल में अनेक घटनाएँ घटती रहती है। सूर्य से आने वाली किरणों में प्रकीर्णन (Scattering) इन्हीं कणों के द्वारा होता है, जिस कारण सूर्योदय तथा सूर्यास्त एवं गोधूली के समय विभिन्न रंग संम्भव हो पाता है।

वायुमण्डल का स्तरीकरण

वायुमण्डल की जानकारी प्राप्त करने के लिये राकेट यान, राडार, आदि नवीन उपकरणों की सहायता ली जाती है। इस आधार पर वायुमण्डल की ऊँचाई 16 से 29 हजार किलोमीटर तक बतायी जाती है। परन्तु धरातल से केवल 800 किमी. ऊंचाई ही वायुमण्डल की संरचना की दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण है।

तापक्रम तथा वायुदाब के आधार पर वायुमण्डल में परिवर्तन मण्डल, समताप मण्डल, मध्य मण्डल, ताप मण्डल आदि ऊर्ध्याकार विभाजन किये जाते हैं।

परिवर्तन मण्डल (Troposphere)

वायुमण्डल के सबसे निचले भाग को, जिसकी ऊँचाई धरातल से 12 किमी. होती है, परिवर्तन मण्डल कहा जाता है। इसके अन्तर्गत भारी गैसों, जलवाष्प तथा धूल कणों की अधिकता रहती है।

धरातल से ऊपर जाने पर प्रति एक हजार मीटर पर 6.5°C की दर से तापक्रम कम होता जाता है। जाड़े की अपेक्षा गर्मी में इसकी सीमा ऊँची हो जाती है। इसकी ऊँचाई पर अक्षांशों का भी प्रभाव होता है। धरातलीय जीवों का सम्बन्ध इसी मण्डल से रहता है।

इस भाग के गर्म और शीतल होने का कार्य विकिरण, संचालन तथा संवाहन द्वारा होता है। संवहनीय तरंगों तथा विक्षुब्ध संवहन के कारण इस मण्डल को क्रम से संवाहनीय मण्डल (Convectional Zone) तथा विक्षोभ मण्डल (Turbulent Zone) कहा जाता है। परिवर्तन मण्डल तथा समताप मण्डल के बीच डेढ़ किमी. मोटी परत को ट्रोपोपास (Tropopause) कहते हैं।

समताप मण्डल (Stratosphere)

समताप मण्डल परिवर्तन मण्डल के ऊपर का भाग होता है, जिसकी ऊपरी सीमा के विषय में मतैक्य नहीं है। इसकी औसत ऊँचाई (मध्य अक्षांशों पर) 25 से 30 किमी. तक बतायी जाती है, जबकि कुछ लोग इसकी ऊपरी सीमा 80 किमी. तक बताते हैं। क्रिचफील्ड के अनुसार समताप मण्डल की ऊपरी सीमा (मध्य अक्षांशों पर ) 25 किमी. तक होती है तथा ट्रोपोपॉज से इस सीमा तक ऊँचाई के साथ तापमान प्रायः समान रहता है। अर्थात् या तो परिवर्तन होता ही नहीं और यदि होता भी है तो बहुत कम।

ओजोन मण्डल (Ozonosphere)

समताप मण्डल के नीचले भाग में 15 किमी. से 35 किमी. के बीच ओजोन गैस का मण्डल होता है। इसकी ऊपरी सीमा 55 किमी. तक भी बतायी जाती है। ओजोन (O) में ऑक्सीजन के तीन ऐटम होते हैं। 80 से 100 किमी. के बीच सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultraviolet Rays) विकिरण के कारण ऑक्सीजन के अणु (Molecules) में बिलगाव (Break-Up) होता है और (000) का निर्माण होता है। इस तरह अलग किये गये ऐटम (00) अलग-अलग रूप में अन्य ऑक्सीजन के अणुओं से मिलकर ओजोन का निर्माण करते हैं।

वायुमण्डल में ओजोन का अत्यधिक महत्त्व होता है क्योंकि यह पृथ्वी के चरो ओर एक रक्षा आवरण का कार्य करती है। इस आवरण के कारण सूर्य की पराबैंगनी किरणें (Ultraviolet Rays) परिवर्तन मण्डल तथा पृथ्वी की सतह तक नहीं पहुंच पाती है। क्योकि ओजोन गैस विकिरण की इन तरंगों का अवशोषण कर लेती है। यदि ये किरणें धरातल तक पहुँच जाती जो धरती का तापक्रम इतना अधिक हो जाता कि भूतल पर (वायुमण्डल के निचले भाग, धरातल तथा उसके नीचे एवं सागर में) किसी भी प्रकार के जीव का जीवन सम्भव नहीं हो पाता।

मध्यमण्डल (Mesosphere)

पृथ्वी के ऊपर 50 किमी. से 80 किमी. की ऊँचाई वाला वायुमण्डलीय भाग मध्य मण्डल कहा जाता है जिसमें तापमान में ऊँचाई के साथ ह्रास होता जाता है। वास्तव में स्ट्रैटोपास में (50 किमी.) पर तापमान की वृद्धि समाप्त हो जाती है तथा और ऊपर जाने पर इसमें ह्रास होता जाता है। तथा 80 किमी. की ऊँचाई पर तापमान -1400 सेग्रे. हो जाता है। इस न्यूनतम तापमान की सीमा को मेसोपॉज कहते है।  इसके ऊपर जाने पर तापमान में पुनः वृद्धि होती जाती है।

तापमण्डल (Thermosphere)

मेसोपास (80 किमी.) के ऊपरवाला वायुमण्डलीय भाग (अनिश्चित ऊँचाई तक) तापमण्डल कहलाता है। यह उच्च तापमान का क्षेत्र है परंतु वायुमंडल के इस क्षेत्र में गैस अत्यंत विरल हो जाती है और विरल गैस बहुत कम ही ऊष्मा को संचित रख पाती है इस लिए यहाँ उस तरह महशुस नहीं होता। तापमण्डल के सबसे निचले भाग को आयन मण्डल कहते हैं।

आयन मण्डल (Ionosphere)

धरातल से 80 से 640 किमी. की ऊँचाई तक विस्तृत वायुमण्डल के भाग को ‘आयन मण्डल’ कहते हैं। इस भाग में विस्मयकारी विद्युतीय एवं चुम्बकीय घटनायें घटित होती रहती हैं। आयन मण्डल में पुनः तीन उप मण्डल होते हैं। सबसे निचले भाग (ऊँचाई 60 से 96 किमी.) को ‘D तह’ कहते हैं। इसके ऊपर ‘E तह’ का विस्तार 96 से 144 किमी तक मिलता है। रेडियों की मध्य तरंगे यहाँ से परावर्तित हो जाती है। सबसे ऊपरी भाग को ‘F तह’ कहते हैं जिसका विस्तार 144 से 360 किमी. तक होता है। इस तह से रेडियो की लघु तरंगें परावर्तित हो जाती हैं। आयन मण्डल तापमण्डल का सबसे निचला भाग होता है।

बाह्यमण्डल (Exosphere)

Exosphere/बाह्यमण्डल यह वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत है, जिसका विस्तार 600 किलोमीटर से हजारों किलोमीटर की ऊंचाई तक फैला हुआ है और अंत में अंतरिक्ष में विलीन हो जाता है। इस बाह्यमण्डल परत में गुरुत्वाकर्षण खिंचाव बहुत ही कम होता है, इसलिए हम कृत्रिम उपग्रह इसी परत मे स्थापित करते है। इस मण्डल के विषय में और विशेष जानकारी प्राप्त नहीं की जा सकी है।

- e.knowledge_shahi