महासागरीय उच्चावच/ नितल
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महासागरीय उच्चावच/ नितल (Oceanic Relief) का वर्णन करें।
महासागरों के नितल पर असंख्य श्रेणियाँ, कटक, बेसिन तथा पर्वत शिखर आदि पाए जाते हैं। महासागरों के कुछ भागों में नितल की स्थलाकृतियाँ पर्वतीय क्षेत्रों के समान अत्यधिक ऊबड़-खाबड़ है।
स्थलमंडल की भाँति जलमंडल में भी विभिन्न उच्चावच वाली स्थलाकृतियाँ पाई जाती है। इन स्थलाकृतियों की उत्पत्ति क महासागरीय तली में होने वाले भू-संचलन (विवर्तनिक) और के समीप होने वाले अपरदन एवं निक्षेपण की पारस्परिक क्रियाओं से है।
स्थलाकृतियों की ऊँचाई तथा महासागरों की गहराई के आधार पर महासागरीय नितल को चार प्रमुख उच्चावच क्षेत्रों के रूप में दर्शाया जाता है। महाद्वीपीय किनारे से महासागरीय नितल तक ये क्षेत्र क्रमशः महाद्वीपीय मग्नतट, महाद्वीपीय मग्नढाल, गहरे समुद्री मैदान और महासागरीय गर्त के रूप में पाए जाते हैं।
महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf)
महाद्वीपीय भाग का वह किनारा जो महासागर में जलमग्न रहता है उसे महाद्वीपीय मग्नतट कहते हैं। मग्नतट पर जल की औसत गहराई 100 फैदम (1 फैदम = 6 फीट) तथा ढाल 1° से 30 के बीच होता है। महाद्वीपीय मग्नतट की उत्पत्ति नदियों या समुद्री तरंगों के अपरदन एवं निक्षेपण द्वारा या महाद्वीपीय किनारों के अवतलन या जलस्तर में वृद्धि के कारण होती है। मग्नतट के स्वरूप पर तटीय स्थलीय उच्चावच का भी नियंत्रण होता है। जिस स्थान पर तट से पर्वतीय भाग संलग्न होते हैं वहाँ मग्नतट संकरे होते हैं। दक्षिणी अमेरिका के प्रशांत महासागरीय मनतट (16 किमी.), संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट के मग्नतट (33 किमी.), अफ्रीका के पूर्वी व पश्चिमी मग्नतट (18-42 किमी.) आदि सँकरे मग्नतटों के उदाहरण हैं। इसके विपरीत जहाँ तटवर्ती भाग के निकट समतल स्थलीय मैदान होते हैं, उस क्षेत्र में मग्नतर विस्तृत होते हैं। उत्तरी अमेरिका का उत्तर-पूर्वी मन्नतट (96-120 किमी.), पूर्वी द्वीपसमूह के मन्नतट (100 से 300 किमी.), आर्कटिक सागर के मग्नतट (160 से 500 किमी.) आदि विस्तृत मग्नतट के उदाहरण हैं। इसके अलावा एड्रियाटिक, दक्षिण चीन आदि सागरों एवं साइबेरिया के मग्नतट की चौड़ाई 1300 किमी. से अधिक है। नदियों के मुहाने पर भी मग्नतटों की चौड़ाई अधिक पाई जाती है। इसी कारण बंगाल की खाड़ी के मग्नतट अधिक चौड़े हैं।
शेपर्ड महोदय ने महाद्वीपीय मग्नतटों की औसत चौड़ाई 68 किलोमीटर तथा गहराई 72 फेदम बताई है। कहीं-कहीं पर इनकी महराई 200 फैदम से भी अधिक होती है। समस्त महासागरीय नितल के क्षेत्रफल के लगभग 8% भाग पर महाद्वीपीय मग्नतट पाए जाते हैं। प्रशांत, अटलांटिक तथा हिंद महासागर में मग्नतटों का प्रतिशत क्रमश: 5.7, 13.3 तथा 4.2 है।
महाद्वीपीय मग्नतट प्रकाशीय क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं और यहाँ पर अवसादों का सर्वाधिक निक्षेपण होता है। महाद्वीपीय मग्नतट महासागरीय नितल के सभी क्षेत्रों से सर्वाधिक उत्पादक होते हैं तथा यहाँ तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का भी विकास होता है। समुद्र के इस भाग में जैव-विविधता सर्वाधिक होती है। ये विश्व में मछली उत्पादन के सर्वाधिक प्रमुख क्षेत्र होने के साथ-साथ खनिजों के संभावित उत्पादक क्षेत्र भी हैं। संसार के कुल खनिज तेल और गैस उत्पादन का 20% भाग महाद्वीपीय मग्नतट से ही प्राप्त होता है।
भारत के महाद्वीपीय मग्नतटों की उत्पत्ति विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न रूपों में हुई है। गंगा, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के मुहाने के सामने मग्नतट का निर्माण डेल्टा के जमाव के कारण हुआ है। इसके साथ ही अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, मिनिकॉय, अमीनदीव, श्रीलंका तथा भारत के मध्य पाक जलडमरूमध्य तथा मन्नार की खाड़ी के मग्नतट प्रवाल के जमाव के कारण बने हैं तथा भारत के पश्चिमी मग्नतट भ्रंशन के कारण बने हैं।
महाद्वीपीय मग्नढाल (Continental Slope)
महाद्वीपीय मग्नतट और गहरे समुद्री मैदान के मध्य पाया जाने वाला वह भाग जहाँ महासागरों की गहराई में वृद्धि प्रारंभ हो जाती है, महाद्वीपीय मग्नढाल कहलाता है। यद्यपि मग्नढाल का औसत कोण 4° होता है लेकिन सेंट हेलेना द्वीप के सहारे 40°, स्पेन के पास 30° तथा सेंट पॉल द्वीप के निकट 62° कोण वाले ढाल भी पाए जाते हैं। महाद्वीपीय मग्नढाल पर जल की गहराई सामान्यतः 200 से 2,000 मीटर तक होती है।
महाद्वीपीय मग्नढाल की उत्पत्ति से संबंधित लगाए गए अनुमान के अनुसार मग्नढाल का निर्माण या तो सागरीय तरंगों की अपरदनात्मक क्रियाओं के फलस्वरूप हुआ है या प्राचीन स्थलखंडों के अवतलन के कारण हुआ है। यह भी अनुमान लगाया गया है कि स्थलखंड के भ्रंशन के कारण अनेक कंदराएँ एवं खाइयाँ बन जाती हैं जिनके सहारे मग्नढालों का विकास होता है।
महाद्वीपीय मग्नढाल पर सागरीय निक्षेप का अभाव रहता है क्योंकि ढाल तीव्र होने के कारण अवसादों का जमाव नहीं हो पाता है। इसके साथ ही तापमान एवं सूर्य के प्रकाश के अभाव के कारण यह क्षेत्र जैविक विकास के लिये भी प्रतिकूल होते हैं। समस्त सागरीय क्षेत्रफल के केवल 8.5% भाग पर ही महाद्वीपीय मग्नढाल पाए जाते हैं। अटलांटिक महासागर में 12.4%, प्रशांत महासागर में 7% तथा हिंद महासागर में 6.5% भाग पर महाद्वीपीय मग्नढाल का विस्तार है।
गहरे सागरीय मैदान (Deep Sea Plains)
जिस सागरीय क्षेत्र की गहराई 3000 से 6000 मीटर तक होती है, सागरीय मैदान कहलाता है। यह महासागरीय नितल का सर्वाधिक विस्तृत भाग होता है। मंद ढाल एवं विषम तल से युक्त सागरीय मैदान का विस्तार समस्त महासागरीय क्षेत्रफल के लगभग 75.9% भाग पर पाया जाता है, किंतु एक महासागर से दूसरे महासागर में यह प्रतिशत परिवर्तनशील है। प्रशांत महासागर में 80.3%, हिंद महासागर में 80.1% तथा अटलांटिक महासागर में 54.9% भाग पर सागरीय मैदान का विस्तार है। अटलांटिक महासागर में महाद्वीपीय मग्नतट का अधिक विस्तार होने के कारण सागरीय मैदान अपेक्षाकृत कम पाए जाते हैं।
सागरीय मैदान पर अनेक स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं। इस भाग पर स्थलजनित पदार्थों का पूर्णतया अभाव है, लेकिन अनेक जीवों एवं वनस्पतियों के अवशेषों का एक आवरण अवशेसों के रूप में मिलता है। इसके साथ ही यहाँ ज्वालामुखी पदार्थों के भी जमाव होते हैं। विभिन्न गहरे समुद्री मैदान में पटल विरूपणी एवं ज्वालामुखी, भूकंप की क्रियाएँ सक्रिय रहती है जिसके द्वारा मैदानों के नितल पर स्थलाकृतियों का उद्भव हुआ है। इसके अलावा यहाँ स्थलीय अपरदनात्मक प्रक्रमों, अपक्षय की क्रियाओं आदि का पूर्ण अभाव है।
इन गहरे समुद्री मैदानों पर महासागरीय कटक, सी-माउंट (Sea Mounts). गुऑट (Guyots), खाई आदि स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं। ग्लोब पर 20 से 60° उत्तरी अक्षांशों के बीच सागरीय मैदानों का विस्तार सर्वाधिक पाया जाता है। 60° से 70° उत्तरी अक्षांशों के बीच सागरीय मैदान का अभाव है।
महासागरीय कटक (Ocean Ridges)
महासागरीय कटक महासागरीय नितलों पर कुछ सौ किलोमीटर चौड़ी तथा सैकड़ों एवं हजारों किमी. लंबी पर्वत श्रेणी होती है। अधिक उच्चावच वाले ऐसे जलमग्न कटक पृथ्वी पर सबसे लंबे पर्वत तंत्र बनाते हैं। इनकी कुल लंबाई 65000 किमी. से भी अधिक है। ये महासागरों के मध्य क्षेत्रों में अधिक संख्या में पाए जाते है तथा मंद ढाल वाले चौड़े पठार के समान या तीव्र ढाल वाले पर्वत होते हैं।
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार महासागरीय कटक का निर्माण प्लेटों की अपसरण क्रिया का परिणाम है। इसके अतिरिक्त महासागरीय नितल पर हजारों एकाकी नितल पहाड़ियाँ या समुद्री पर्वत (गुट) भी पाए जाते हैं। इनकी उत्पत्ति ज्वालामुखी प्रक्रिया द्वारा होती है।
महासागरीय गर्त (Oceanic Deeps)
महासागरीय नितल पर विभिन्न प्रक्रियाओं से निर्मित महासागरों के सर्वाधिक गहरे भाग को गर्त कहते हैं। ये गर्त महासागरीय नितल के लगभग 9% भाग पर फैले हैं। गर्त का ढाल तीव्र होता है तथा ये प्रायः तट के सहारे मेखलाओं के सामन या द्वीपों के सहारे मिलते हैं। आकारीय विषमता के आधार पर इन गर्तों को दो वर्गों – महासागरीय खाई तथा महासागरीय द्रोणी में विभाजित किया जाता है। जो गर्त लंबे एवं गहरे होते हैं उन्हें महासागरीय खाई (Oceanic Trenches) कहते हैं। इसके विपरीत जो गर्त लंबे, सँकरे, अत्यंत गहरे एवं चापाकार होते हैं, उन्हें महासागरीय द्रोणी (Oceanic Troughs) कहा जाता है।
महासागरों में अभी तक कुल 57 गढ़ों का पता लगाया गया है जिनमें से प्रशांत महासागर में 32 जबकि अटलांटिक महासागर में 19 गर्त हैं। सबसे कम महासागरीय गतों की संख्या हिंद महासागर (6 गर्त) में है। विश्व का सबसे गहरा गर्त चैलेंजर (मेरियाना) गर्त (11.022 मी.) है जो प्रशांत महासागर में स्थित है। सुंडा (7,450 मी.), क्यूराइल (10,498 मी.), सखालीन, प्यूटोरिको (8.385 मी.), रोगा (10,882 मी.) आदि प्रमुख गर्त हैं।
- e.knowledge_shahi
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