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परम्परागत चिन्ह या रूढ़ चिन्ह (Conventional Signs)
स्थलाकृतिक मानचित्र में भिन्न-भिन्न भौतिक और सांस्कृतिक लक्षणों को भिन्न-भिन्न संकेतों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। परम्परागत चिन्ह या रूढ़ चिह्न से तात्पर्य उन चिन्हों या संकेतों से होता है, जो अलग – अलग भौतिक और सांस्कृतिक भूदृश्यों को प्रदर्शित करने के लिए बनाए जाते हैं। परम्परागत रूप से इन चिन्हों या संकेतो को मानचित्र के निरूपण के लिए प्रयोग किया जाता है। इन परम्परागत चिह्नों का निर्धारण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किया जाता है।
परम्परागत चिह्नों के साथ-साथ भू-पत्रक मानचित्रों में निम्नांकित रंगों का प्रयोग किया जा सकता है। इन रंगों के द्वारा मानचित्रों में प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक भू-दृश्य प्रस्तुत किए जाते हैं
लाल रंग – लाल रंग का प्रयोग भवन (बस्तियों) एवं सड़क मार्गों को प्रदर्शित करने में किया जाता है।
पीला रंग – पीला रंग का प्रयोग कृषि क्षेत्रों के प्रदर्शन में किया जाता है।
हरा रंग – हरे रंग से वन, प्राकृतिक वनस्पति, घास तथा बाग-बगीचे आदि प्रदर्शित किए जाते हैं।
नीला रंग – नीले रंग द्वारा तालाब, नदी, झील, सागर तथा अन्य जलाशय क्षेत्रों अर्थात् विभिन्न जल क्षेत्रों को प्रदर्शित किया जाता है।
काला रंग – इसका प्रयोग सीमाएँ प्रकट करने तथा रेलवेलाइन को प्रदर्शित करने में किया जाता है।
कत्थई रंग – कत्थई रंग द्वारा ऊँचाई प्रदर्शित करने के लिए समोच्च रेखाएँ बनाई जाती हैं।
भूरा रंग – भूरा रंग पर्वतीय क्षेत्रों के छायाकरण में प्रयुक्त किया जाता है।